Monday, September 16, 2024

जमात से नमाज़ अदा करना


एक फर्ज के बारे में

जमात से नमाज़ अदा करना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:“जिस ने तक्बीरे ऊला के साथ चालीस दिन तक अल्लाह की रज़ा के लिए जमात के साथ नमाज़ पढी उस के लिये दोजख से नजात और निफाक से बरात के दो परवाने लिख दिये जाते हैं।"
[ तिर्मिज़ी: 241 ]



इस हदीस से जमात के साथ नमाज़ अदा करने की अहमियत और इसके फज़ीलत का पता चलता है।


Sunday, August 25, 2024

इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है




इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है


रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्मायाः

"इल्म हासिल करना हर मुसलमान पर फर्ज है।”

[इब्रे माजा: 224, अन अनस बिन मालिक (र.अ) ]

सफा और मरवाह की सई करना



सफा और मरवाह की सई करना


रसूलुल्लाह (ﷺ) (सफ़ा और मरवाह) की सई करते हुए सहाबा से फर्मा रहे थे के सई करो, क्योंकि अल्लाह तआला ने सई को तुम पर लाज़िम करार दिया है।

[मुस्नदे अहमद : 26821, अन हबीबा बिन्ते तजज़ा (ऱ.अ)]

इस्लाम की बुनियाद




इस्लाम की बुनियाद

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : इस्लाम की बुनियाद पांच चीज़ों पर है :

(1) इस बात की गवाही देना के अल्लाह के अलावा कोई माबूद नहीं और मोहम्मद (ﷺ) अल्लाह के रसूल है। (2) नमाज़ अदा करना। (3) ज़कात देना। (4) हज करना। (5) रमज़ान के रोजे रखना।

[बुखारी: 8, अन इने उमर (र.अ)]

मीकात से एहराम बांध कर गुज़रना



मीकात से एहराम बांध कर गुज़रना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :

"कोई शख्स बगैर एहराम बांधे हुए मीकात से न गुजरे।"

[मुसनफ़े इब्रे अबी शैवा : 4/509]

फायदा: खान-ए-काबा से कुछ फ़ास्लों पर चंद जगहें हैं जहां से एहराम बांधते हैं इन्हें "मीकात" कहा जाता है। यहां से गुजरते वक्त मक्का से बाहर रहने वालों पर ऐहराम बाँधना लाज़िम है।