हज व उमरह एक साथ करना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:
“हज और उमरह को एक साथ किया करो इस लिए के वह दोनों फक्र और गुनाहों को खत्म कर देते हैं, जैसा के भट्टी लोहे और सोने चांदी के मैल को खत्म कर देती है और हज्जे मबरूर (मक़बूल) का बदला तो सिर्फ जन्नत ही है।”
[तिर्मिज़ी: 810, अन इब्ने मसूद (र.अ)]
इस हदीस से हज और उमरह की अहमियत और उनकी रूहानी और दुनियावी फज़ीलत का पता चलता है, कि वे इंसान के गुनाहों और परेशानियों को दूर करने का ज़रिया हैं।