Tuesday, March 14, 2023

बैतुल्लाह की तामीर


 

बैतुल्लाह की तामीर


. अल्लाह तआला ने इन्सानों की पैदाइश से हज़ारों साल पहेले फ़रिश्तों के ज़रिए बैतुल्लाह (खाना-ऐ-काबा) तामीर कराई, यह रूए ज़मीन पर पहेला बाबरकत घर और दुनिया वालों के लिए अमन व सुकून की जगह है, फिर हज़रत आदम अलैहि सलाम ने दुनिया में आने के बाद बैतुल्लाह की तामीर फ़रमाई, बाज़ रिवायतों के मुताबिक तूफाने नूह (अ०) के मौके पर अल्लाह तआला ने हिफाज़त के लिए इस घर को आस्मान पर उठा लिया था, फिर अल्लाह के हुक्म से हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम व इस्माईल अलैहि सलाम ने इस की तामीर फ़रमाई और फ़रिश्ते जिब्रीले अमीन जन्नत से एक कीमती पत्थर ले कर आए जिस को बैतुल्लाह के कोने में लगाया गया और दूसरा वह जन्नती पत्थर है जिस पर हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम खड़े हो कर बैतुल्लाह की तामीर करते थे, मुअजिज़ाना तौर पर यह पत्थर काबा की दीवारों के साथ बलंद हो जाता था। यह मकामे इब्राहीम के नाम से मशहूर है।

. जब तवील ज़माना गुजरने की वजह से काबा की दीवारें कमज़ोर पड़ गयीं, तो हुजूर (ﷺ) की नुबुब्बत से पहले कुरैशे मक्का ने हतीम का हिस्सा छोड़ कर और बैतुल्लाह का पिछला दरवाजा बंद कर के इसास्त को मुरब्बा (चौकोर) अंदाज़ में बनाया। गर्ज़ तामीरे बैतूल्लाह के साथ तमाम हज व उमरह करने वालों के लिए अल्लाह तआला ने इस का तवाफ़ फ़र्ज़ कर दिया है और इसी घर को तमाम मुसलमानों की इबादत का मरकज़ और क़िब्ला करार दे दिया है।

Thursday, December 22, 2022

ज़मज़म का चश्मा


ज़मज़म का चश्मा

. हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) अल्लाह के हुक्म से अपनी बीवी हाजरा (ऱ.अ) और लख्ते जिगर इस्माईल (अलैहि सलाम) का बेआब व गयाह और चटियल मैदान में छोड़ कर चले गए, जब इन के थैले की खजूर और मशकीजे का पानी खत्म हो गया और भूक व प्यास की वजह से हज़रत हाजरा (ऱ.अ) का दूध खुश्क हो गया तो बच्चा भूक के मारे बिलबिलाने लगा, इधर हाजरा (ऱ.अ) बेचैन हो कर पानी की तलाश में सफ़ा व मरवाह पहाड़ी पर चक्कर लगाने लगी, जब सातवें चक्कर में मरवाह पहाड़ी पर पहूँची, तो गैबी आवाज़ सुनाई दी, तो समझ गई के अल्लाह की तरफ से कोई खास बात ज़ाहिर होने वाली है।

. वापस आई तो देखा के जिब्रईले अमीन तशरीफ़ फ़र्मा हैं और उन्हों ने जमीन पर अपनी एड़ी मार कर पानी का चश्मा जारी कर दिया। बहते पानी को देख कर हज़रत हाजरा (ऱ.अ) ने ज़मज़म (रुक जा) कहा। उसी दिन से इस का नाम ज़मज़म हो गया। अगर हज़रत हाजरा (ऱ.अ) इस पानी को न रोकती तो वहां पानी की नहेर जारी हो जाती।

. यह चश्मा हज़ारों साल तक बंद पड़ा रहा, नबी (ﷺ) के दादा अब्दुल मुत्तलिब ने ख्वाब की रहनुमाई से इस कुवें की खुदाई की, तो साफ़ सुथरा पानी निकल आया, उस दिन से आज तक इस का पानी खत्म नहीं हुआ, जबके हर वक्त मशीनों से पानी निकालने का काम जारी है।

Saturday, November 19, 2022

सफा व मरवाह


सफा व मरवाह

.     सफ़ा व मरवाह मक्का में बैतुल्लाह के बिल्कुल करीब दो पहाड़ियां हैं, जब इब्राहिम (अलैहि सलाम) अल्लाह के हुक्म से हज़रत हाजरा (ऱ.अ) और इस्माईल (अलैहि सलाम) को मक्का में छोड़ कर चले गये तो खाना पानी खत्म हो गया। तो हज़रत हाजरा (ऱ.अ) पानी की तलाश में इन्हीं दो पहाड़ियों के दर्मियान दौड़ी थीं।

.     फ़िर जब कुछ जमाने के बाद बुत पस्स्ती का दौर शुरू हुआ तो सफ़ा मरवाह पर भी दो बुत रख दिए गए थे, इस्लाम से पहले लोग सई के बाद इन का बोसा लेते और ताज़ीम के तौर पर यह समझते के तवाफ़ व सई इन्हीं के नाम पर किया जाता है, इस्लाम में जब सफ़ा व मरवाह के दर्मियान सई करने का हुक्म दिया गया, लोगों को शुबा पैदा हुआ के इस सई से कहीं बुत परस्तों की मुशाबहत न हो जाए, तो अल्लाह तआला ने फर्माया के –
“हम ने हज़रत हाजरा (ऱ.अ) की इस अदा को कयामत तक हज व उम्रह करने वालों के लिए बाइसे अज्र व सवाब और इस्लामी यादगार बना दिया है। यह कोई गुनाह की बात नहीं, बल्के तुम्हारे लिए इबादत व तक़र्रूबे इलाही का ज़रिया है।”

.     चुनान्चे हज व उम्रह करने वालों के लिए सफ़ा व मरवाह के दर्मियान सई करना वाजिब है और बिला किसी शरई उज्र के सई छोड़ देने पर दम वाजिब है।

Friday, November 18, 2022

हज़रत अबू उबैदह बिन जर्राह (र.अ)


हज़रत अबू उबैदह बिन जर्राह (र.अ)


हजरत अबू उबैदह बिन जर्राह (र.अ) का अस्ल नाम आमिर बिन अब्दुल्लाह है। वह भी उन मुबारक हस्तियों में हैं जिन्हें रसूलुल्लाह (ﷺ) ने दुनिया में ही जन्नत की खुशखबरी दे दी थी। गज्व-ए-उहुद के दिन जब रसूलुल्लाह के चेहर-ए-मुबारक में खौद (लोहे की टोपी) की दो कड़ियां दाखिल हो गई थीं तो उसे अबू उबैदह ने अपने दांतों से पकड़ कर खींचा था जिसकी वजह से उन के सामने के दो दांत टूट गए थे।

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने उन के बारे में फर्माया : “हर उम्मत के लिए एक अमीन (अमानतदार) होता है और मेरी उम्मत के अमीन अबू उबैदह बिन जर्राह (र.अ) हैं।”

एक मर्तबा हज़रत उमर (र.अ) ने उनसे मुलाकात की तो देखा की ऊँट के कजावे की चादर पर लेटे हुए हैं और घोड़े को दाना खिलाने वाले थैले को तकिया बनाया है। हजरत उमर (र.अ) ने उन से फ़र्माया के आपने अपने साथियों की तरह मकान व सामान क्यों नहीं बना लिया, इस पर अबू उबैदह (र.अ) ने फ़र्माया: “कब्र तक पहुँचने के लिए यह सामान काफ़ी है।”

उनकी वफ़ात सन १८ हिजरी में मुल्के शाम में हुई।