Thursday, December 22, 2022

ज़मज़म का चश्मा


ज़मज़म का चश्मा

. हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) अल्लाह के हुक्म से अपनी बीवी हाजरा (ऱ.अ) और लख्ते जिगर इस्माईल (अलैहि सलाम) का बेआब व गयाह और चटियल मैदान में छोड़ कर चले गए, जब इन के थैले की खजूर और मशकीजे का पानी खत्म हो गया और भूक व प्यास की वजह से हज़रत हाजरा (ऱ.अ) का दूध खुश्क हो गया तो बच्चा भूक के मारे बिलबिलाने लगा, इधर हाजरा (ऱ.अ) बेचैन हो कर पानी की तलाश में सफ़ा व मरवाह पहाड़ी पर चक्कर लगाने लगी, जब सातवें चक्कर में मरवाह पहाड़ी पर पहूँची, तो गैबी आवाज़ सुनाई दी, तो समझ गई के अल्लाह की तरफ से कोई खास बात ज़ाहिर होने वाली है।

. वापस आई तो देखा के जिब्रईले अमीन तशरीफ़ फ़र्मा हैं और उन्हों ने जमीन पर अपनी एड़ी मार कर पानी का चश्मा जारी कर दिया। बहते पानी को देख कर हज़रत हाजरा (ऱ.अ) ने ज़मज़म (रुक जा) कहा। उसी दिन से इस का नाम ज़मज़म हो गया। अगर हज़रत हाजरा (ऱ.अ) इस पानी को न रोकती तो वहां पानी की नहेर जारी हो जाती।

. यह चश्मा हज़ारों साल तक बंद पड़ा रहा, नबी (ﷺ) के दादा अब्दुल मुत्तलिब ने ख्वाब की रहनुमाई से इस कुवें की खुदाई की, तो साफ़ सुथरा पानी निकल आया, उस दिन से आज तक इस का पानी खत्म नहीं हुआ, जबके हर वक्त मशीनों से पानी निकालने का काम जारी है।
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