रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया
"रोजेदार के लिये रोज़ा खोलते वक़्त एक दुआ ऐसी होती है जो रद्द नहीं होती । "
हज़रत अबदुल्लाह बिन अम्र (रज़ि.) ये दुआ किया करते थे
,"अल्लाहुम्मा इन्नी अस अलुका बिरहमति कल्लत वसीअत कुल्ला शैइन, अन-तगफिल
"ऐ अल्लाह ! मैं तेरी रहमत के ज़रिए सवाल करता हूं, जो हर चीज़ को ढांपे हुए है, कि मुझे माफ़ कर दे।
[सुनन इब्ने माजह: 1753 | हसन ]
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