"शबे-क़द्र की फ़ज़ीलत कुरआन व हदीस की रौशनी में "
Al-Quran
हमने इस (क़ुरआन) को शबे-क़द्र में नाज़िल किया है। और तुम क्या जानो कि शबे-क़द्र क्या है? शबे-क़द्र हज़ार महीनों से ज़्यादा बेहतर है। फ़रिश्ते और रूह उसमें अपने रब के इज़्न से हर हुक़्म लेकर उतरते है। वो रात सरासर सलामती है, तुलुए-फ़ज्र तक।
[97:1-5]
रमज़ान आया तो रसूल अल्लाह ने फ़रमाया:
ये महीना आ गया और इस में एक ऐसी रात है (शबे-क़द्र) जो हज़ार महीनों से बेहतर है, जो इस से मेहरूम रहा वो हर तरह के ख़ैर (भलाई) से मेहरूम रहा, और इस की भलाई से मेहरूम वही रहेगा जो (वाक़ई) मेहरूम हो।
[Ibn e Maja 1644]
जो कोई शबे-क़द्र में ईमान के साथ और सवाब के हासिल करने की नियत से क़याम करता है उसके पिछले (गुजरे हुए) तमाम गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।
[Sahih Bukhari 1901]
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